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जमीन का आखिरी टुकड़ा

इब्राहिम शरीफ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6151
आईएसबीएन :81-237-2348-7

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जमीन का आखिरी टुकड़ा, इब्राहिम शरीफ की रोमांचक रचना.....

Jamin Ka Akhiri Tukada -A Hindi Book by Ibrahim Sharif

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जमीन का आखिरी टुकड़ा


आंगन में चारपाई पड़ी थी। मां उसी पर लेटी हुई थी। मेरी आवाज पर वह उठ बैठी। मैंने मां के पैर छुए। उसके पास ही बैठ गया। मुझे छूते ही वह रोने लगी। छोटे दादा भी पहुँच चुके थे। बड़े दादा, बच्चे भीतर खाना खा रहे थे। सभी आंगन में आ गये। जूठे हाथों सहित बच्चे मुझसे चिपट गये। मां बोली-‘‘पहले हाथ मुंह धो, खाना खा लो। थक गये होंगे।’’
भाभी रोटी सेक रही थीं। मैं चौके में ही बैठ गया।
मैंने छोटे दादा से पूछा-‘‘आप कब आये ?’’
जवाब बड़े दादा ने दिया-‘‘परसों सुबह।’’
मैंने पूछा-‘‘भाभी और बच्चों को नहीं लाये ?’’
छोटदा बोले-‘‘ना।’’
मैंने फिर से पूछा-‘‘बच्चे कैसे हैं ?’’
छोटदा ने कहा-‘‘मंजे में हैं। तुमको याद करते हैं।’’
दाल में नमक कम था। मैंने थोड़ा नमक लेकर दाल में मिलाया।
बड़दा ने पूछा-‘‘तार मिला था ?’’
मैंने कहाँ- ‘‘हाँ !’’
बड़दा ने शिकायत की ‘‘सोचा था तुम और पहले आओगे।’’
मैं धीरे से कह पाया-‘‘छुट्टी नहीं मिली।’’
बड़दा नाराज थे। बोले-‘‘वही पुरानी बात...’’
मुझे कहना पड़ा-‘‘मैं क्या करूं। नियम ही ऐसे हैं.....नौकरी तो करनी है।’’
अब तक बच्चे खाना खा चुके थे। बड़दा भी उठे। हाथ धो आये। उन्होंने बीड़ी सुलगा ली और दीवार से पीठ सटाकर बैठ गये। तकलीफ के साथ वे बोले-‘‘तुम दो साल बाद घर आये हो।’’


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